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आतंकवाद को जड़ से नहीं मिटाया जा सकता,कसाब और अफजल भी सत्ता के बलि के बकरे बन गए,वर्ना ये तो हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देव सिंह पाटिल जी की दरियादिली थी जिन्होंने अपने कार्यकाल में 35 फाँसी की सजाए माफ की। आप क्या मानते हैं इस गंदे राजनीति को? मैंने तो इसे सौम्य आतंकवाद का दर्जा दिया है,अगर कसाब से बदला लेना ही था तो उसी दिन ले लिया होता जिस दिन कसाब पकड़ा गया था नहीं तो इस देश के गरीबों का 50 करोड़ रुपया हड़प कर क्या मिला,ये फाँसी तो उस दिन भी हो सकती थी। बँटवारे के बाद दंगा हुआ था जिसमें न जाने कितने शहीद हुए कितनो का घर उजड़ गया,न जाने कितने बलात्कार के शिकार हुए,ऐसे हैं हमारे मजहब बाँटने वाले।
इन घटनाओं का शिकार हुए लोगों ने आतंकवाद को जन्म दिया,कई लोगों ने घर वापस जाने से इन्कार कर दिया,फिर शुरु हुआ आतंकवादी हमला,तो अब आप ही बताइए गुनाहगार कौन? सियासी लड़ाई ने भारत का रंग रूप बदल दिया,1965,1971 और 1999 में हुए भारत-पाक लड़ाई में जो पाकिस्तान की हार हुई उसे पाकिस्तान भुला नही पा रहा,ये आतंकवादी हमले इन्हीं का परिणाम है,और दोनों देशों के दिग्गज इन आतंकवादी हमलों को मोहरा बनाकर सियासी दाँव खेल रहे हैं। सीज़फायर का उल्लंघन पाकिस्तान के लिए एक आम बात बन गया है,हम सिर्फ मुँह ही देख सकते हैं नहीं तो कुर्सी चले जाने का गम सभी को होता है। सच्चाई तो यह है की भारत कितना भी कुछ क्यों नही कर ले पाकिस्तान से रिस्ते मजबूत नही कर सकता।
जय हिन्द।।
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